लेखनी प्रतियोगिता -20-Mar-2022 - मैं चुप हूँ
मैं भी थोड़ी चुप हूंँ ,
अपने में ही गुम हूंँ ,
शब्दों का करती इस्तेमाल नहीं ,
आंखों से भी थोड़ी क्षुब्ध हूंँ |
इंसान हूंँ पर कहां कोई मानता ,
दिल के हालात नहीं कोई जानता ,
गुजरती रही सीने पर जो मेरे ,
भला कौन उसे पहचानता |
राते आंखों में ही कट जाती ,
दिन की भी उम्र जैसे बढ़ जाती ,
बेअसर रहता उम्र का पहरा मुझ पर ,
चाहते मेरी सीने में दफन हो जाती |
हाथ चलते मेरे मशीन की तरह ,
लोग समझते कठपुतली की तरह ,
रक़ीब मेरे खुद बन बैठे वो यहांँ ,
खेल गए मुझ संग खिलौने की तरह |
मधुशाला में भी वो जाम पीकर ,
मुस्कुराते वो है मेरा भी लहू पीकर ,
प्रतिकार जो कभी करती मैं ,
कहते हैं फिर क्या करोगी तुम जीकर |
पहले भी मैं थोड़ी चुप थी ,
आज फिर मै थोड़ी चुप हूंँ ,
इंसान न माना तुमने कोई बात नहीं ,
चुप ही रहने दो अगर मैं चुप हूंँ |
शब्द जो कभी निकलेंगे मुंह से मेरे ,
फाड़ डालेंगे यह सीने को भी तेरे ,
अंगुलियां तुम उठाते क्यों रहते
नजर क्यों रखते हो जीने पर भी मेरे ||
प्रतियोगिता हेतु
शिखा अरोरा (दिल्ली)
Shrishti pandey
21-Mar-2022 10:47 AM
Nice one
Reply
Punam verma
21-Mar-2022 08:46 AM
Nice one
Reply
Abhinav ji
21-Mar-2022 08:08 AM
Very nice👍
Reply